क्यों जनता के हिस्से में केवल वादे?
राजस्थान की राजनीति में आज तूफान की पहली लहरें उछाल मार रही है। लोकसभा चुनाव का पहला चरण जिसमें 12 उम्मीदवारों के भाग्य आज ईवीएम में बंद हो जाएंगे और आने वाले 4 जून को जिनके भाग्य का फैसला प्रदेश की जनता करेगी।
लेकिन सबके बावजूद आखिर जनता को क्या मिलेगा वही फिर
“वादे बस वादे और वादे।”
आखिर एक लंबे समय से इस देश में यही तो हो रहा है। मजदूर, किसान और गरीबवर्ग इन राजनेताओं के वादों के झांसे में उलझ कर रह गया है। किसी का वादा है देश से गरीबी मिटा देंगे तो कोई कहता है हम विकासशील देश की श्रृंखला में सबसे आगे आने वाले हैं।
लेकिन गरीब आज भी गरीब है। किसान जो देश का अन्नदाता है शायद ही कभी कोई ऐसा दिन हो जब वह भरपेट भोजन खाता हो और अपनी फसल की सुरक्षा से मुक्त हो ।
सरकारों का एक फैसला उन पर किस कदर रातों-रात भारी पड़ जाता है समझ से परे।
देश का युवा बेरोजगार घूम रहा है। देश के नेता और मंत्री अमीरों के टैक्स के पैसे से भोग- विलास में डूबे रहते हैं। एक दूसरे पर झूठे आरोप लगाना इनकी नियति बन चुका है। आखिर क्यों इनको मोटा वेतन और भत्ते दिए जाते हैं ?
अगर इस सब का टोटल लगाया जाए तो अरबो में राशि बैठती है। कहते हैं जब जुर्म हद से गुजर जाता है सहन करने की सीमाएं जब बर्दाश्त के बाहर हो जाती है तब अंदर ही अंदर एक लावा सुलगने लगता है।
अब शायद वक्त आ गया है जब सत्ता के इस गंदे खेल को बंद करना होगा।
“मुझको अपनी तपिश का डर ना दिखा
मैं कोई बर्फ नहीं हूं जो पिघल जाऊंगा
बारूद बंद है मुट्ठी में मेरे,
मत छेड़ जल जाएगा, माना की अंधेरा बहुत गहरा है अभी घर में मेरे,
मैं वह दीपक हूं जो
तूफान में भी जल जाऊंगा।”
आलेख :- अशोक भटनागर “राष्ट्रध्वज”
स्वतंत्र पत्रकार